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“दिल की बात”

(An Story of Heart Transplant)

किरीट नामा- 15

October 26, 2019

16 अगस्त 2019 को मुझे एक फोन आया. फ़ोन करनेवाले थे नरेंद्र विश्वकर्मा. उन्होंने कहा,

"सर आज मेरे पुर्नजीवन कोदो साल पुरे हुए, अर्शिर्वाद दिजिये."

“सर, आप और आपके कार्यालय के सहकर्मियों के प्रयत्नों के परिणामस्वरुप मुझे ये नवजीवन प्राप्त हुआ है. आप सभी की मेहनत का परिणाम था की दो वर्ष पूर्व मुलुंड के फोर्टिस हॉस्पिटल में मेरे हृदय के प्रत्यारोपण की शल्य-क्रिया की गई. एक नए दिल की धडकन शुरु हो गई. इस बात को अब दो वर्ष हो गए हैं. मैं अपना जीवन सुचारु रुप से जीवन व्यतीत कर रहा हूं.”

घटना यह थी की,

24 साल के युवा श्री नरेंद्र विश्वकर्मा पंतनगर, घाटकोपर, मुंबई के रहनेवाले हैं. 27 फ़रवरी 2016 को उन्हें यह महसूस हुआ की जब वे थोडा सा भी पैदल चलते हैं तो उनकी सांस फ़ूलने लगती है. रात को सोते समय भी सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी थी. बहुत से डॉक्टर और विशेषज्ञों के पास गए पर सही रुप से कुछ भी निदान नहीं हो रहा था. अंत में 11 अक्टूबर 2016 को डॉ. पोतदार इस निष्कर्ष पर पहुंचे की नरेंद्रजी को Dilated Cardiomyopathy बीमारी है. इलाज के लिए वे कई दवाईयां ले रहे थे. Angiography भी की गई. पर रक्त प्रवाह में कहीं भी अवरोध नहीं पाए गए. फोर्टिस हॉस्पीटल के डॉक्टर श्री. अन्वय मुळे व उनके सहकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे की नवीन हृदय का प्रत्यारोपण ही इसका एकमात्र इलाज है.

मुलुंड स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल की तरफ़ से इलाज के लिए श्री नरेंद्र विश्वकर्मा को दिया गया 20,00,000/- रुपये खर्चे का अंदाजा (Quotation)

  • डॉक्टरों के अनुसार श्री नरेंद्र को नवीन हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी.  
  • उनकी आर्थिक परिस्थिती बहुत ही नाजुक थी.  
  • उनके पिताजी श्री रामनरेश विश्वकर्मा सुथार (लकडी का काम) काम करनेवाले मजदूर थे. उनकी सालाना आय केवल 84,000/- रुपये थी.
  • परिवार में पांच व्यक्ति उनपर निर्भर थे.
  • ऐसी परिस्थिती में कोई भी व्यक्ति मानसिक रुप से परेशान हो जाएगा.
  • पैसों की व्यवस्था करना उनके लिए असंभव था.
  • उन्हें इस इलाज के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी. हृदय प्रत्यारोपण (Transplant) का मतलब क्या ? क्या करना चाहिए ? कैसे सारी व्यवस्था की जाती है ? सारी परिस्थिती असहनीय थी और पूरा परिवार चिंताग्रस्त था.
  • इस परिस्थिती में श्री. रामनरेश  विश्वकर्मा ने फ़ोर्टिस के वैद्यकीय समाजसेवक श्री. संतोष सारोटेजी से मुलाकात की और सारी परिस्थिती की जानकारी दी.
  • श्री सारोटेजी ने उन्हें चिंता न करने का दिलासा दिला.
  • श्री सारोटेजी ने उन्हें कुछ संस्थाओं (ट्रस्ट) के माध्यम से आर्थिक सहायता पाने हेतु प्रयत्न करने का आश्वासन दिया और श्री विश्वकर्माजी को भी कुछ संस्थाओं (ट्रस्ट) के फॉर्म दिए.

फोर्टिस हॉस्पिटल की तरफ़ से आवाहन

  • अब महत्वपूर्ण बात यह थी की श्री विश्वकर्माजी की वार्षिक आमदनी का प्रमाण-पत्र और राशनकार्ड की उपलब्धता.
  • घाटकोपर स्थित श्री. पराग शहा के कार्यालय की तरफ़ से श्री विश्वकर्मा को डॉ. किरीट सोमैयाजी के कार्यालय से संपर्क करने को कहा गया.
  • मैं स्वयं हर शनिवार सुबह 10 बजे से नीलमनगर, मुलुंड-पूर्व में मेरे कार्यलय में आम नागरिकों से मिलने हेतु (Public Day) उपलब्ध रहता हूं.
  • 27 अप्रेल 2017 को श्री विश्वकर्मा मेरे कार्यालय में आए.  मेरे सहयोगी (वैद्यकीय प्रतिनिधी) श्री. नटुभाई पारेख से मैंने इस विषय में चर्चा की तथा आर्थिक सहायता किस प्रकार से उपलब्ध कराई जाए यह तय किया.
  • मैंने श्री. रामनरेश विश्वकर्माजी को दिलासा दिया और यह विश्वास दिलाया की आपका काम हम सभी मिलकर करेंगे.
  • “इतने सब लोग मेरे साथ हैं और मेरा बेटा अब ठीक हो जाएगा” यह जानकर श्री रामनरेश जी आश्वस्त हुए. मेरे कार्यालय के सभी लोग पूरे जोश के साथ काम में जुट गए.  नरेंद्र को जीवनदान देने के लिए हर संभव प्रयत्न करने के एक ही लक्ष्य को सामने रखकर सभी काम करने लगे.
  • सर्वप्रथम वार्षिक आमदनी का प्रमाण-पत्र श्री. नटुभाई पारेखजी की मदद से मिला.

विश्वकर्मा-परिवार का वार्षिक आमदनी का प्रमाण-पत्र

  • मुख्यमंत्री वैद्यकीय सहायता निधी, टाटा ट्रस्ट, सिद्धिविनायक ट्रस्ट जैसी संस्थाओं के देने के लिए सभी प्रकार प्रमाण-पत्र और अन्य कागजात जैसे राशनकार्ड, फोर्टिस हॉस्पिटल का कोटेशन, डॉ. विजिता शेट्टी द्वारा की गई आर्थिक सहायता की अपील का पत्र इत्यादी की एक फ़ाईल और सभी फ़ाईलों के साथ मेरे द्वारा दिया गया निवेदन (आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु), इस प्रकार की संपूर्ण फ़ाईल विभिन्न संस्थाओं को दी गई.
  • श्री नटूभाई ने मुख्यमंत्री सहायता निधी से आर्थिक सहायता के लिए संबंधित अधिकारियों से बात करके उन्हें इस विषय की गंभीरता से अवगत कराया, और त्वरीत ही 3,00,000 रुपयों का चेक फोर्टिस हॉस्पिटल के नाम से जारी करवाने में सफ़लता प्राप्त की.
  • अन्य संस्थाओं के माध्यम से भी मदद मिलनी शुरु हो गई. टाटा ट्रस्ट ने 5 लाख 98 हजार, सिद्धिविनायक ट्रस्ट ने 25 हजार रुपयों की सहायता की.
  • इसके पूर्व श्री. नटुभाई ने फोर्टिस हॉस्पिटल के संबंधित डॉक्टर और कर्मचारियों से मुलाकात की और उपचार शुरु करने की विनती की. “पैसों की व्यवस्था डॉ. किरीट सोमैया जी के मार्गदर्शन के अनुसार हो जाएगी” इस प्रकार का भरोसा उन्होंने डॉक्टरों को दिया.
  • उन्होंने अंग प्रत्यारोपण के लिए विशिष्ट अंग प्राप्त करने हेतु नीयमों के अनुसार मरीज का नाम जे. जे. हॉस्पिटल के Zonal Transplant Co-ordination Centre (ZTCC) में दर्ज कराने के लिए सभी प्रमाण-पत्र और अन्य जरुरी कागजातों की पूर्तता की.
  • ZTCC में विशेषज्ञ डॉक्टरों की समिती होती है. यह समिती पेशंट के Blood Group से लगाकर इलाज के लिए अन्य सभी आवश्यक जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर लेती है, इसके साथ ही फोर्टिस हॉस्पिटल में (अथवा जिस हॉस्पिटल में ऑपरेशन कराना है) जिस अंग की आवश्यकता है उसे भी दर्ज किया जाता है. उसके बाद पेशंट को अवयव प्राप्ती के लिए एक प्रतीक्षा नंबर दिया जाता है.
  • ZTCC संस्था द्वारा अंग प्रत्यारोपण की सूची तैयार की जाती है और प्रत्येक अवयवप्राप्ती के लिए संगणकीकृत (Computerized) प्रतीक्षा सूची बनाकर उस पेशंट का नंबर आने पर उसे सूचित किया जाता है.
  • अवयव दान के बारे में नीयमों की जानकारी http://www.ztccmumbai.org/ztcc/ इस लिंक पर उपलब्ध है.

अवयव दान कौन कर सकते हैं --

  • कई बार किसी दुर्घटना में कोई व्यक्ति गंभीर रुप से घायल हो जाता है. दुर्घाटना और चोट की तीव्रता अधिक हो और मरीज की जान बचने की कोई संभावना न हो तो उसे ब्रेन डेड घोषित किया जाता है. ऐसे व्यक्ति life Saving Suppport पर कुछ घंटे जी सकते हैं.
  • ऐसी परिस्थिती में डॉक्टर मरीज के रिश्तेदारों से बात करके उन्हें अवयव दान यानी अंग दान के महत्व के बारे में समझाते हैं. वे संबंधित रिश्तेदारों को मरीज के अवयव दान करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि अगर उन्होंने अवयव दान करने का निर्णय लिया तो किसी और व्यक्ति को जीवनदान मिल सकता है.
  • जब किसी परिवार में इस प्रकार की भयंकर दुर्घटना होती है तो परिवार के सदस्यों को अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखकर अपने प्रियजनों के विरह बारे में सत्य का सामना करना पडता है. परंतु, उस व्यक्ति के कारण पांच-छह व्यक्तियों को अच्छी तरह से जीवन जीने का अवसर मिल सकता है इस उदात्त भावना से वे मरीज के अवयव डॉक्टर या अस्पताल को दान करने की लिखित अनुमती प्रदान करते हैं.

जे.जे हॉस्पिटल के माध्यम से मिली और जानकारी -

  • रिश्तेदारों की लिखित अनुमती मिलने पर अंग शरीर से अलग करने के पश्चात 6 ते 8 घंटों तक सुरक्षित रुप से (Preserve) रख सकते हैं.
  • जिस अस्पताल में अंग सुरक्षित रुप से रखने की व्यवस्था है वहीं मरीज को ले जाना पडता है.
  • पूरे देश में जिन हॉस्पीटल में अंग प्रत्यारोपण करना है वहां की पूरी जानकारी केन्द्रिय रुप एकत्रित की जाती है.
  • जिनका अंग प्रत्यारोपण करना है उन मरीजों के  Clinical Report और जिस मरीज का अवयव निकाला गया है उसकी जांच के Report को मिला कर देखा जाता है.
  • Report का मिलान कर के तुरंत संबंधित अस्पतालों से संपर्क किया जाता.
  • संबंधित मरीज को तुरंत अस्पताल में भरती किया जाता है.
  • दान किए हुए अवयव यानी अंग को ग्रीन कॉरिडॉर के माध्यम से दूसरे अस्पताल तक पहुंचाया जाता है.  Air Ambulance, Ambulance, पुलीस, ट्रॅफिक पुलीस, Airport Authority इन सभी की एक टीम बनाकर दान किए उए अवयव को लेकर डॉक्टर रवाना होते हैं. उस समय ट्रॅफिक पुलीस के माध्यम से रास्ते का ट्रॅफ़िक रोककर सभी वाहनों और गाडियों को एक तरफ़ रोक दिया जाता है और रास्ता पूरी तरह से खाली करवा दिया जाता है.
  • तब तक अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर (OT) डॉक्टर पूरी तैयारी कर लेते हैं.
  • इसी तरीके से फोर्टिस हॉस्पिटल में 50 से अधिक हृदय प्रत्यारोपणा के ऑपरेशन किए गए हैं.

वैसे तो नरेंद्र विश्वकर्मा का नाम 27 अप्रेल 2016 से अंग-दान की प्रतीक्षा सूची में था परंतु हर बार कोई न कोई दिक्कत सामने आ जाती थी. अचानक एक दिन 16 अगस्त 2017 को उन्हें तुरंत फोर्टिस अस्पताल में अॅडमिट होने के लिए फोन आया. देर शाम नरेंद्र अस्पताल में भरती हुए और उनकी वैद्यकीय जांच शुरु की गई. इसका कारण यह था की कोल्हापूर की एक 22 वर्षीय युवती को मुंबई पुणे एक्सप्रेस रोड पर एक दुर्घटना में सिर में गहरी चोटें आई थी. पुणे के रुबी क्लिनिक में उसका ईलाज चल रहा था. दुर्भाग्यवश डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया था. जीवरक्षक साधनों की सहायता से कुछ समय उसे जिंदा रखा जा सकता था.

यह बात उस युवती के रिश्तेदारों को बता दी गई थी. समाजसेवकों ने अवयव दान के बारे में उन्हें जानकारी दी. ऐसे समय में बहुत ही कम समय में निर्णय लेना होता है और यह बात बहुत ही कष्टप्रद होती है. फ़िर भी युवती के रिश्तेदारों ने अवयवदान करने का निर्णय लिया. विभिन्न संस्थाओं द्वारा उन्हें आवश्यक अंगों की मांग रखी गई. उनके फ़ेफ़डे (lungs) चेन्नई भेजे गए.

17 अगस्त मध्यरात्री के पश्चात 1.47 बजे उस युवती का हृदय Ruby Hall Hospital, Pune से डॉक्टरों की एक टीम के साथ सडकमार्ग से रवाना हुआ. 143 किमी की यात्रा ग्रीन कॉरिडॉर के माध्यम से सिर्फ़ 1 घंटा 49 मिनट में पूरी करके के 3.36 बजे मुंबई के फोर्टिस हॉस्पिटल तक सुरक्षित रुप से लाया गया.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा समाचार

नरेंद्र विश्वकर्मा को 16 अगस्त 2017 को रात 10.30 बजे फोर्टीस में अॅडमिट किया गया. रात 3.36 बजे हृदय लाया गया. शल्य-क्रिया रात 1.30 से सुबह 8 बजे तक करीब 6.30 घंटे तक चालू थी. उसके बाद उसे ICU और Special Room में 15 दिन तक रखा गया.

29 अगस्त 2017 को उन्हें Discharge दिया गया. उन्हें बहुत सी सूचनाओं दी गईं जिनका उन्हे पालन करना था. कम से कम 6 महिने तक उन्हें घर से बाहर न निकलने की सलाह दी गई. उनके आस-पास कीसी भी रिश्तेदार को जाने की अनुमती नहीं थी. इसका कारण यह था की जीवाणू संक्रमण द्वारा उत्पन्न किसी भी बीमारी से बचा जा सके.

डॉ. अन्वय मुळे, उनके सहकर्मी डॉ. अशिष, डॉ. उपेन, डॉ. जाधव, डॉ. संदीप और उनसे संबंधित कर्मचारियों ने सफ़लतापूर्वक शल्य-क्रिया संपन्न की.

डिस्चार्ज प्रमाणपत्र

  • के पश्चात 9 महिने पूरे होने पर नरेंद्र विश्वकर्मा पहली बार घर से बाहर निकले तो सीधे मुझसे मिलने आए, साथ में मिठाई लेकर आए और मेरे पैर छूकर आशीर्वाद मांगे. उनके साथ उनके पिताजी भी आए थे. उनकी और उपस्थित सभी लोगों की आंखों में आंसू आ गए. 

नरेंद्र की तरफ़ से दिया गया पेढा मेरे संपूर्ण जीवन में सर्वाधिक मधुर पेढा था.

मेरे कार्यालय में नरेंद्र और उनके पिताजी

  • अब अंधेरी में काम करता है. अपना स्वयं का और दवाईयों का खर्चा निभा सके इतना वेतन वह पा लेता है. अपने शरीर में दुसरे व्यक्ति के हृदय के माध्यम से अब उसके जीवन की गाडी धकधक करते हुए चल रही है. वह खुशी से जीवन व्यतीत कर रहा है.  

बहुत सी संस्थाओं, डॉक्टरों, मेरे सहयोगी श्री. नटुभाई पारेख (देवदूत), फोर्टिस हॉस्पिटल के समाजसेवक श्री. संतोष सारोटे, श्री. अतुल शहा, श्री. अशोक राय, श्री. गोलाटीया और इनके जैसे असंख्य लोगों की सहायता के कारण मैंने 27 अप्रेल 2017 को जिस कठिन कार्य को करने का संकल्प किया था, वह कार्य 17 अगस्त 2017 को पूर्ण हो सका.

हर किसी के भाग्य में किसी व्यक्ति को जीवन दान देने का मौका लिखा हुआ नहीं होता. यह अवसर उपरोक्त सभी लोगों को प्राप्त हुआ. केवल नियती ही इस बात का फ़ैसला करती है. इससे मिलने वाले आनंद, समाधान की तुलना भौतिक जगत में मिलने वाले किसी भी आनंद से नहीं की जा सकती.

जिन लोगों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से नरेंद्र के हृदय की शल्यक्रिया के लिए कष्ट उठाए उन सभी का आभार प्रकट करते हुए उन्हें हृदय से शुभेच्छा देता हूं.

सारांश:

  • जिंदगी जीने की जबरदस्त इच्छा शक्ती
  • प्रयत्नों की परीसीमा
  • आनेवाले संकटों से सामना करने की हिंमत
  • ऐसे लोगों की मदद के लिए बहुत से लोग आगे आ जाते हैं
  • सही समय पर सही मार्गदर्शन
  • आर्थिक सहायता
  • डॉ. अन्वय मुळेजी की टीम और फोर्टिस हॉस्पिटल की तरफ़ से पूरी सहायता
  • अवयव प्रत्यारोपण के लिए तैयार होने वाले मरीज, अपने प्रियजनों की मृत्यु का दु:ख सहन कर के दुसरों को  जीवनदान देने के लिए अवयव दान करनेवाले और देवदूत की तरह डॉक्टर.... यह सब तर्क-शक्ती से परे है. इन सभी को सलाम!
  • ग्रीन कॉरिडॉर में करीब 400 ट्रॅफिक पुलीस और आम जनता का सहयोग, इसी कारण 143 कि.मी.का पुणे से मुंबई का रास्ता केवल 1 घंटा 49 मिनट में तय हो पाया.
  • हम सभी का ध्येय एक ही था. नरेंद्र विश्वकर्मा को नवजीवन प्रदान करना.