“I will walk again” ---
“मैं फ़िर से अपने पैरों पर खडी रहूंगी” यह संकल्प था सायली का, अपने आपको प्रतिबद्ध किया था सायली ने. उसका सपना था सरकारी सेवा में एक बडी अधिकारी बनने का. पुणे जिले में एक छोटे कस्बे जुन्नर की रहनेवाली हैं 22 साल की सायली ढमढेरे.
इस दीपावली पर 28 अक्टूबर 2019 सायली के पिताजी श्री संजय ढमढेरे जी का शुभकामना संदेश आया था. उन्होंने लिखा था---
“सायली अब चलने लगी है.”
“आपके द्वारा सहयोग और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद”
सायली के दृढनिश्चय की कहानी
22 साल की सायली UPSC/ MPSC की परिक्षा की तैयारी कर रही थी. उसने बी.एससी. परिक्षा 78% अंकों से उत्तीर्ण की थी. सितंबर/अक्टूबर 2016 में सायली मुंबई/ठाणे में अपने एक संबंधी के घर परिक्षा की तैयारी के लिए आई थी और 20 अक्टूबर 2016 को अपने घर वापस जा रही थी.
SIAC परिक्षा का हॉल टिकट
सायली के परिवार को उस समय गहरा धक्का पहुंचा जब 20 अक्टूबर 2016 को उन्हें यह संदेश मिला की सायली एक बडी रेल दुर्घटना में घायल हो गई है.
20 अक्टूबर 2016 को सायली कल्याण से इंद्रायणी एक्सप्रेस से पुणे जाने के लिए स्टेशन पर पहुंची. कल्याण प्लॅटफॉर्म पर रेल में चढते समय उसका संतुलन बिघड गया. वे प्लॅटफॉर्म और रेल्वे पटरी के बीच की खाली जगह पर गिर पडी और वहीं फ़ंस गई थी. वह ट्रेन के नीचे आ गई और उसके दोनों पैर कट गए.
पलभर में रेल्वे के पहिए उनके दोनों पैरों के उपर से निकल गए और साथ ही सायली का सुनहरे जीवन से भरा भविष्य उसके हात से निकल गया.
Midday पेपर में छपा समाचार
रेल्वे पुलीस, अधिकारी व यात्रियों ने सायली को उठाया और कल्याण के बाई रुक्मिणीबाई सरकारी हॉस्पिटल में ले गए. उसके बाद वहां से उसे अगले ईलाज के लिए ठाणे के ज्युपिटर हॉस्पिटल ले जाया गया.
जैसे ही मुझे यह समाचार मिला, मैं तुरंत ज्युपिटर हॉस्पिटल की तरफ़ दौड पडा. ज्युपिटरके डॉक्टर और व्यवस्थापक तथा सायली के परिवार के सदस्यों से मैने चर्चा की.
22 वर्ष की एक युवती पर यह एक बहुत बडा मानसिक और शारीरिक आघात था. उनका परिवार सदमे में था. उसके दोनों पांव कट चुके थे.
हमने, हमारी सामाजिक संस्था “युवक प्रतिष्ठान” के माध्यम से इस प्रकार की घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पिछले कुछ सालों से हमारी संस्था ने रेल दुर्घटना से पीडीत व्यक्तियों को उत्तम ईलाज और कृत्रिम अंग (Prosthesis) प्रदान करने में बहुत सहायता की हैं.
हमारा यह उपक्रम “Limb for Life” के नाम से जाना जाता है.
सायली को वैद्यकीय और मानसिक दोनों ही प्रकार की मदद आवश्यक थी. डॉक्टर से बात करके मैंने कुछ ऐसे व्यक्तियों को ज्युपीटर हॉस्पीटल में बुलवाया जो इस प्रकार के सदमे का शिकार हुए थे. उन सभी के साथ इसी प्रकार की रेल दुर्घटना हुई थी पर अब वे स्वस्थ होकर फ़िर से नवजीवन जी रहे थे.
- डॉ. रोशन शेख के दोनों पैर मुंबई में रेल दुर्घटना में इसी तरह से कट गए थे. रोशन अब कृत्रिम पैरों के सहारे सामान्य जीवन व्यतीत कर रही हैं.
- अंधेरी में हुई रेल दुर्घटना में 22 साल के नवनाथ यमगर अपना दांया पैर और दांया हाथ गंवा बैठे. हमने उन्हें उत्तम किस्म का एक कृत्रिम पैर और हाथ प्रदान किया. वे अब सामान्य व्यक्ती की तरह जी रहे हैं.
- घाटकोपर में हुई रेल दुर्घटना में मोनिका मोरे, (जब वे विद्यर्थिनी थी), के दोनो हाथ कलाईयों से कट गए थे. उन्हें भी कृत्रिम हाथ लगाए गए.
- 22 साल के तन्वीर शेख के दोनों पैर, 2013 में कुर्ला रेल दुर्घटना में कट गए थे. उन्हें भी इसी प्रकार की मदत दी गई. आज वे सायन में अपनी मोबईल की दुकान सफ़लतापूर्वक चला रहे हैं.
इस प्रकार के संघर्ष कर रहे कई युवा सायली से मिलने हॉस्पीटल आए. उन्होंने खुद के अनुभव सायली को सुनाए और उसके मनोबल को बढाया.
ज्युपिटर हॉस्पिटल में सायली से मुलाकात
उस दिन सायली के चेहरे पर मुस्कान देखकर मुझे बहुत खुशी हुई. जीवन के प्रती दृढ संकल्प उसके चेहरे पर दिखाई दे रहा था.
- हॉस्पिटल में इलाज का अपेक्षित खर्च था - 28 लाख रुपये.
- कृत्रिम पैरों का खर्चा था 10 लाख से भी अधिक.
- ज्युपिटर हॉस्पिटल के प्रमुख डॉ. अजय ठक्कर व उनके पुत्र डॉ. अंकित ठक्कर से बात करके उनसे विनती की वे सामाजिक जिम्मेवारी के तहत हॉस्पीटल के खर्चे में अधिकाधिक छूट प्रदान करें.
- सायली के परिजनों से और हॉस्पीटल के अधिकारियों से बात करके यह निर्णय लिया गया की सायली का उत्तम तरीके से ईलाज किया जाएगा.
- 20 लाख से कुछ अधिक रुपए सहायता (Donation) के तौर पर इकठ्ठे किए गए.
जिन संस्थाओं से सहायता ली गई वे थी
- युवक प्रतिष्ठान
- लोटस फ़ाउंडेशन
- टाटा ट्रस्ट
- सिद्धिविनायक ट्रस्ट
- कुछ अन्य संस्थाएं और सायली के परिजन, गांव के निवासी, श्री. सुधीर सावंत, श्री. अशोक साठे, डॉ. मराठे, श्री. राजेश गांगुर्डे, श्री. यतीश गुजराथी, श्री. यतीन खन्ना, श्री. रमेश तासकर इन सभी व्यक्तियों द्वारा की गई बडी आर्थिक मदद.
सायली के परिवार द्वारा आर्थिक मदद की अपील
- बर 2016 में दो महिनों के पश्चात उपचार पूरे होने पर सायली जुन्नर अपने घर वापस गई.
फ़िर दो वर्षों तक अगले ईलाज और शल्य-क्रिया (Follow Up Treatment/ Surgery) के बाद कृत्रिम पैर लगवाने के लिए सायली पूर्णत: तैयार थी.
कुछ ही महिनों पहले सायली को सर्वोत्कृष्ट दर्जे के अत्याधुनिक कृत्रिम पैर लगाए गए. अब सायली अपने स्वयं के पैरों पर (अत्याधुनिक कृत्रिम पैरों पर) धीरे-धीरे चल सकती है.
सायली ने फ़िर से UPSC/MPSC की परीक्षा की पढाई शुरु की है.
सायली को इस पुनर्जीवन के लिए बहुत बहुत बधाई.
इस नए जीवन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं, सायली