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“गाथा महेंद्र की”

किरीटनामा- 20

· hindi

आज मुझे मेरे मोबईलवर एक एस.एम.एस. आया.

“तुमच्या सगळ्यांच्या असण्यानेच माझे आयुष्य परिपूर्ण आहे. प्रत्येकाने मला काहीतरी दिले आहे, शिकवले आहे. Thank you so much guys for being there in my life... तुम्ही सगळेच माझ्या आयुष्यात महत्त्वाचे आहात.”

(आप सभी के होने से मेरा जीवन परिपूर्ण है. प्रत्येक व्यक्ती ने मुझे कुछ न कुछ प्रदान किया है, मुझे सिखाया है. मेरे जीवन में आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आप सभी मेरे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.)

श्री महेंद्र पितले जी का यह संदेश किसी दुर्घटना में घायल होकर हात-पैर खोने वाले व्यक्तियों के लिए आदर्श बन गया है. 2006 में मुंबई रेल्वे में हुए आतंकवादी  हमले में श्री महेंद्र अपना हात खो बैठे थे. आज 30 नवंबर 2019 को उन्होंने मुझे उपरोक्त एस. एम. एस. भेजा, धन्यवाद!

श्री महेंद्र का मेसेज

अमेरिका में 30 नवंबर का दिन “आभार प्रदर्शन दिवस” (Thanks Giving Day) के रुप में मनाया जाता है. जीवन में जो व्यक्ती हमारी सहायता करते हैं उनके प्रती आभार प्रदर्शित करते हुए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है. उस दिन जिन लोगों ने हमारी मदत की है उन्हें इस बात की याद दिला कर आभार प्रकट किया जाता है. 30 नवंबर को शाम को श्री महेंद्र का मुझे आभार प्रदर्शन का (Thanks Giving) संदेश (Message) मिला.  

          2 दिसंबर को मैं बेलगाव में अपने एक संबंधी के घर विवाह समारोह में गया था. वहां श्री महेंद्र के परिचित उनके एक मित्र से मुलाकात हुई और उनके माध्यम से यह पता चला की  श्री महेंद्र की माताजी का 28 नवंबर को स्वर्गवास हो गया था. मातृशोक के इस दु:खद समय में भी उन्होंने मुझे 30 नवंबर को थँक्स गिव्हिंग का मेसेज भेजा, इस बात का मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ.

          वैसे तो पिछले 13 वर्षों से श्री महेंद्र मुझे बीच बीच में मेसेजेस भेजते रहते हैं पर इस समय उनका धन्यवाद का मेसेज इस कारण से था की, अब उन्हें रेल्वे में उचित काम मिल गया था. कुछ ही सप्ताह पूर्व श्री महेंद्र को पश्चिम रेल्वे मॅनेजर के चर्चगेट के मुख्यालय में मनचाही नौकरी (लिपिक) पर पोस्टिंग मिल गई थी. 13 साल बाद पुन: एक बार उन्होंने समाधान व्यक्त किया.

कौन हैं महेंद्र पितले

  • श्री महेंद्र पितले 11 जुलाई 2006 में मुंबई रेल्वे में सिरीअल बॉम्बब्लास्ट की जो घटनाएं हुई थी, उसमें घायल व्यक्तियों में से एक थे.
  • 2006 में जोगेश्वरी स्टेशन पर हुए बॉम्बब्लास्ट में श्री महेंद्र ने अपना बायां हात गंवा दिया था.
  • वे फ़ाईन आर्टिस्ट हैं उनका व्यवसाय फाईन आर्ट से संबंधित था जिसमें दोनों हाथों की आवश्यकता होती है.
  • कल्चर, कार्विंग, आर्किटेक्चर से संबंधित एक फर्म में वे नौकरी कर रहे थे.
  • मां, पिताजी और दो भाई उनके परिवार के सदस्य. परिवार का सारा भार उन्ही पर था. परिवार का खर्चा वे ही चला रहे थे और ऐसे में वे अपना एक हाथ गंवा बैठे.
  • चार - पांच महिनों तक वे अत्यंत निराशा की अवस्था में थे.
  • ब्लास्ट के कुछ दिनों पश्चात उनका मुझसे संपर्क हुआ.
  • उनसे बात करते करते मुझे यह लगा की “ऑटोबॉक” कंपनी के माध्यम से उन्हें इलेक्ट्रॉनिक हाथ प्रदान किया जा सकता है. उस कृत्रिम हाथ की सहायता से वे अपना जीवन फ़िर से नए सिरे से शुरु कर सकेंगे और जी सकेंगे.
  • इस बॉम्बब्लास्ट में जिन व्यक्तियों ने अपने हाथ, पैर गंवाए उन सभी को ऑटोबॉक कंपनी के माध्यम से आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक हाथ, पैर प्रदान किए गए.

आधुनिक कृत्रिम हाथ के साथ श्री महेंद्र

  • इस आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक हाथ मिलने से वे जरा खुश हुए परंतु इस हाथ से उन्हें पेंटींग, कार्विंग के काम, जो वे पहले करते थे, अब नहीं कर पा रहे थे.
  • उसके पश्चात श्री महेंद्र “प्रोस्थेटिक्स मॅन्युफॅक्चरिंग कंपनी” के लोगों से मिलने गए. वहां उन्हें कुछ अपंग (दिव्यांग) लोगों के व्हिडिओ दिखाए गए. उन व्हिडीओ को देखकर उनका मनोबल बढा.
  • बॉम्बब्लास्ट के बाद जब वे पुन: अपनी कंपनी में काम के लिए गए तो कंपनी के मालिक ने उन्हें कॉम्प्युटर पर काम करने को कहा. उनसे कहा गया की “दोनों हाथों से करने योग्य काम तुम नहीं कर पाओगे.”
  • फ़िर वे कॉम्प्युटर पर काम करने  लगे और उनका वेतन आधा हो गया.
  • उसी समय बॉम्बब्लास्ट में अपंग व्यक्तियों को  रेल्वे प्रशासन ने अपने यहां नौकरी देने की घोषणा की. श्री महेंद्र ने सभी जरुरी कागजात की पूर्तता 2008 में ही कर दी थी.
  • रेल्वे की नौकरी के लिए श्री महेन्द्र की तरफ़ से और मेरी तरफ़ भरसक कोशिश की जा रही थी. पश्चिम रेल्वे के डी. आर. एम. ऑफिस, जी. एम. ऑफिस, रेल्वे मिनिस्टर ऑफिस इन सभी से पत्रों के माध्यम से आगे की कार्यवाही के संदर्भ में संपर्क जारी था.
  • दिसंबर 2015 में श्री महेंद्र को पश्चिम रेल्वे में खलासी के पद पर ग्रुप डी में नौकरी मिली.

पश्चिम रेल्वे में ग्रुप डी में नियुक्ती का पत्र

  • रेल्वे ने उनकी नियुक्ती “कोच केअर सेंटर” में की. वहां उन्होंने कुछ दिन मन लगाकर भारी/शारीरिक मेहनत का काम भी किया पर ज्यादा दिन तक इस प्रकार का काम करना उनके लिए संभव नहीं था. उन्होंने जनरल मॅनेजर, पश्चिम रेल्वे, को आवेदन किया की उन्हें स्थानांतरीत करके उनके योग्य काम दिया जाए.

महेंद्र का निवेदन पत्र

  • पश्चिम रेल्वे के “जनरल मॅनेजर” को पत्र लिक्खने के बाद भी कोई कार्यवाही न होते देख वे मेरे पास आए और मुझे कहा, “साहेब, मेरा स्थानांतरण ग्रुप डी से ग्रुप सी में करवाने के लिए आप मेरी सहायता करें.”
  • मैने पश्चिम रेल्वे के महाव्यवस्थापक (GM) और विभागीय रेल्वे व्यवस्थापक (DRM) को पत्र लिखे और बताया की श्री महेंद्र मूलत: एक आर्टीस्ट और संगणक (Computer) की सहायता से काम करने में सक्षम है. ग्रुप डी के काम से उनकी कार्यक्षमता (Protential) का पूर्ण उपयोग रेल्वे नहीं कर रही है.

ग्रुप डी से ग्रुप सी में  बदली करने के लिए जनरल मॅनेजर, पश्चिम रेल्वे को लिखा गया आवेदन पत्र

इसलिए उन्हें ग्रुप सी में शामिल करके लेखनिक (Clerk) के पद पर नियुक्ती की जाए. उन्हें यह भी निवेदन दिया की इस प्रकार से दिव्यांग व्यक्तियों को “रेल्वे ऑपरेशन” से संबंधित काम दिए जाएं. रेल्वे मंत्रालय को लिखे पत्र में यह भी कहा की इस प्रकार से कर्मचारियों की क्षमता के अनुसार काम देना महाव्यवस्थापक महोदय के लिए संभव है.

दिव्यांगों को योग्य काम देने के संदर्भ में भारतीय रेल्वे मंत्रालय को लिखा गया पत्र

  • बहुत प्रयत्न करने के बाद अखिर श्री महेंद्र की ग्रुप सी में  बदली की गई व अभी वे वहीं काम कर रहे हैं

ग्रुप सी मध्ये बदली करने का आदेश और नियुक्ती पत्र

  • नौकरी करते हुए भी श्री महेन्द्र शांत नहीं बैठे. हाथ गंवाने के बाद भी उन्होंने स्वयं की एक नई पहचान बनाई. अपने लिए एक नई दिशा चुनी और उस दिशा में अग्रसर हुए.
  • फ़िर से उदासीनता के जंजाल में न पडने का निश्चय करके वे “रॉयल एनफिल्ड बुलेट रायडर्स” के समूह में शामिल हुए. जागृती करने के लिए वे “क्रॉस कंट्री टूर्स” करने लगे. लद्दाख तक की यात्रा वे बाईक पर सवार होकर कर चुके हैं. 
  • श्री महेंद्र हमेशा ऐसे व्यक्तियों से स्वयं जाकर मिलते हैं जो किसी दुर्घटना में अपना कोई अंग गंवा चुके हैं. वे उन्हें प्रोत्साहित करते हैं. इलेक्ट्रॉनिक अंगों का इस्तेमाल किस तरह से किया जाए, जीवन नए सिरे से कैसे शुरु किया जाए, कैसे जीना चाहिए, इस प्रकार की जानकारी देने का काम उन्होंने शुरु किया है. इस प्रकार से वे पीडित व्यक्तियों को एक तरह का मानसिक आधार देते हैं.

हर वर्ष 11 जुलाई को नियमित रुप से मेरे साथ रेल्वे दुर्घटना में मृत व्यक्तियों को श्रद्धांजली अर्पित करने के कार्यक्रम में वे सहभागी होते हैं और मृत व्यक्तियों के परीवार के सदस्यों को सांत्वना प्रदान करते हैं.

श्रद्धांजली कार्यक्रम में उपस्थिती

जीवन में किसी व्यक्ती को फ़िर से अपने पैरों पर खडा करके उसके जीवन का मार्ग योग्य दिशा में प्रशस्त करने पर विशेष प्रकार का संतोष मिलता है.

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